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GPS KYA HOTA HAI
जीपीएस क्या होता है
क्या आप भी हैरान होते हैं जब भी आपको कहीं जाना हो और आप बस अपना मोबाइल खोलें और अपने गंतव्य यानि कि डेस्टिनेशन का नाम डालें और तुरंत आपको पता चल जाता है कि वो जगह आपसे कितनी दूर है और आपको जिस साधन से भी जाना है उससे जाने में आपको कितना समय लगेगा साथ ही आपको यह भी पता चल जाता है कि सबसे छोटा रास्ता आपके गंतव्य तक पहुंचने का कौन सा है , जी हाँ दोस्तों ये कमाल है जीपीएस (GPS) का मतलब ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का जिसे हम हिंदी में वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली कहते हैं ,आइये जानते हैं आखिर क्या होता है जीपीएस।
अब तो हम तुरंत ही अपने फोन पर जीपीएस का उपयोग कर लेते हैं पर क्या आपको पता है जीपीएस का उपयोग कब ,कहां और किसने किया?
जीपीएस का विकास अमेरिका के रक्षा विभाग के इस्तेमाल हेतु बनाया गया था इसका सबसे ज्यादा उपयोग जमीन का सर्वेक्षण करने, नक्शा बनाने और ट्रैक करने के लिए किया जाता था।
सन् 1973 में अमेरिकी रक्षा विभाग ने पहला जीपीएस प्रोजेक्ट शुरू किया और इसके पांच साल बाद फरवरी 1978 में पहला स्पेसक्राफ्ट लॉन्च किया जिसमें 24 सैटेलाइट इस्तेमाल होती थीं। 1980 से पहले तक आम नागरिकों को जीपीएस इस्तेमाल पर प्रतिबंध था ये सिर्फ रक्षा विभाग के लोग ही इस्तेमाल कर सकते थे।जब रशियन सुरक्षा दल ने अमेरिकी आम नागरिक विमान को मार गिराया क्योंकि वो उनकी सीमा में घुस गया था इसीलिए अमेरिकी सरकार ने इसे आम नागरिकों के लिए भी खोल दिया गया लेकिन उस समय ये सही लोकेशन नहीं दे पाता था उसके कुछ वर्षों के बाद सन् 2000 में यह सही ढंग से काम करना शुरू किया और तब से सभी लोग इसका प्रयोग करने लगे और इस पर भरोसा करने लगे।
अभी तक 76 जीपीएस सैटेलाइट लॉन्च हो चुकी हैं जिसमे से 34 चालू हालत में हैं और 30 सैटेलाइट रिटायर हो चुकी हैं। 2 सैटेलाइट लॉन्च के बाद खो चुकी हैं 9 रिजर्व में हैं।
जीपीएस(GPS) की परिभाषा
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है ग्लोबल में आपकी पोजिशन मतलब आपकी लोकेशन। जीपीएस एक ऐसा सिस्टम है जिसमें तीन पार्ट्स होते हैं
1. सैटेलाइट, यहां 24 सैटेलाइट प्रयोग में लाई जाती हैं।
2. ग्राउंड स्टेशंस
3. रिसीवर
मोबाइल या ऐसी डिवाइस जिसमें आपको पता चलता है लोकेशन के बारे में वो एक रिसीवर है जो डेटा रिसीव करता है।
सैटेलाइट मतलब उपग्रह तारामंडल में तारों की तरह ही कार्य करता है और ये गणना करता है कि वह स्थान या लोकेशन कहां है जो कि ग्राउंड स्टेशन रडार का उपयोग कर सैटेलाइट को सिग्नल भेजता है कि वाकई में वह स्थान वहां है जहां सैटेलाइट ने सिग्नल भेजा है रिसीवर को।
जीपीएस कितने प्रकार के होते हैं
1. असिस्टेड जीपीएस सिस्टम
ये जीपीएस का एक प्रकार है जिसका उपयोग किसी भी जीपीएस के स्टार्टिंग परफॉरमेंस को इम्प्रूव करने के लिए होता है। इसे ऑगमेंटेड जीपीएस या ए जीपीएस के नाम से भी जाना जाता है। हमारे फोन में एक रिसीवर लगा होता है जिसका काम होता है ज्यादा से ज्यादा सैटेलाइट से लिंक बनाके रखना और उनके सिग्नल को रिसीव करना और इसी तरह से हमें सही लोकेशन का पता लगता है। ऐसे में ए जीपीएस आपको जल्दी से जल्दी लोकेशन पता करने में मदद करता है।
2. समकालिक जीपीएस सिस्टम
इससे मोबाइल को जीपीएस डाटा और वॉइस डाटा एक ही समय पर मिलते हैं। यह मोबाइल कैरियर पर आधारित डाटा को इंप्रूव करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
3 . जीपीएस लॉकिंग
जीपीएस लॉकिंग का मतलब है लोकेशन लॉक करना मतलब एक्जैक्ट लोकेशन का पता करना जैसे हम अपने फोन में कोई भी गंतव्य को डालते हैं और फिर उसे फॉलो करते हैं तब वह लोकेशन लॉक हो जाती है और आपको सही दिशा निर्देश मिलते हैं। जीपीएस लॉकिंग तीन प्रकार की होती है।
1. हॉट स्टार्ट जीपीएस लॉकिंग
इसमें आपकी आखिरी लोकेशन का पता रहता है और जैसे ही आप नई जगह खोजते हैं तो वह तुरंत आपको बता देता है।यदि आप इस जगह के नजदीक हैं तो आपको बहुत तेज ही खोज का पता चल जाता है।
2. वॉर्म स्टार्ट जीपीएस लॉकिंग
इसमें आपकी आखिरी लोकेशन स्टोर रहती है। ये हॉट स्टार्ट जीपीएस लॉकिंग से थोड़ा स्लो काम करता है।
3. कोल्ड स्टार्ट जीपीएस लॉकिंग
इस जीपीएस लॉकिंग सिस्टम में कोई भी लोकेशन स्टोर नहीं रहती है और जब आप किसी बिल्कुल ही नई जगह को सर्च करते हैं तब ये उसे खोजता शुरू करता है यह सबसे स्लो काम करता है।
जीपीएस(GPS) का फुल फॉर्म क्या होता है
जीपीएस का फुल फॉर्म ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम होता है। जिसे हिंदी में वैश्विक स्थान निर्धारण हैं।
जीपीएस(GPS) कैसे काम करता है
अर्थ यानि कि पृथ्वी के चरों तरफ सैटेलाइट रहती हैं जो इसके चक्कर लगाती रहती हैं। इन सैटेलाइट का एक निश्चित समय रहता है कि ये इतने समय बाद चक्कर लगाएंगी। ये सैटेलाइट अर्थ से 20180 किलोमीटर ऊपर रहती हैं। जीपीएस के लिए जो सैटेलाइट रहती हैं वो अपने सिग्नल रिसीवर को भेजती हैं जिससे ये पता लगता है कि वो स्थान अर्थ पर कहां है। ये पूरी प्रक्रिया के दौरान जो समय लगता है उसे सैटेलाइट में लगी हुई एटॉमिक क्लॉक से मापा जाता है इसी से हमें नियत स्थान का पता लगता है। एटॉमिक घड़ी एक ऐसी घड़ी है जो करोड़ों साल बाद भी एकदम सही बनी रहती है।